By Sakshi Tripathi | Mumbai
संघवी धनरूपजी देवाजी एंड कंपनी यानी मुंबादेवी दागीना बाजार का 33 नंबर शो रूम, यानी इंदरभाई राणावत। मुंबई में जवेरी बाजार में पसरी गोल्ड ज्वेलरी की दुनिया में इस गोल्ड ज्वेलरी की कंपनी के बारे में बहुत सालों से एक कथा बहुत प्रचलित है। कथा यह है कि जो कोई भी गोल्ड ज्वेलरी के कारोबार में है, वह अगर संघवी धनरूपजी देवाजी एंड कंपनी के बारे में नहीं जानता, तो इसका मतलब सिर्फ यही है कि वह इस बाजार का जानकार नहीं है। एक जमाना था, कि जवेरी बाजार में ज्वेलरी के व्यापार में अगर इस कंपनी ने किसी की साख दे दी, तो उसकी उन्नति आसान हो जाती थी। पूरा बाजार उसके साथ सहयोग के लिए जुट जाता था। वक्त बदलने के बाद भी हालात आज भी यही है, नए लोगों से व्यापार करने से पहले लोग साख पूछते हैं, और कोई अगर 33 नंबर, इंदरभाई राणावत या फिर धनरूपजी देवाजी का नाम लेता है, तो फिर किसी और से सकी साख पूछने की जरूरत समझी नहीं जाती। दरअसल, यह साख का मामला है। जिसकी साख दूसरों की जिंदगी को आगे बढ़ाने के काम आती हो, उसकी खुद की साख कितनी बड़ी होगी, इसका अंदाज आसानी से लगाया जा सकता है। लेकिन इंदरभाई राणावत कहते हैं, यह सब लोगों के स्नेह और विश्वास का परिणाम है। वे कहते हैं कि भले ही कितने ही साल किसी भी काम में हो जाएं, मगर विश्वसनियता के लिए कुछ ऐसे अलग और ऊंचे काम करने पड़ते है, जो बाकी लोगों के काम से भिन्न हों।
इंदरभाई बताते हैं कि आज वक्त बदल गया है, गोल्ड ज्वेलरी के कारोबार में भी बहुत उतार चढ़ाव भरा बदलाव आया है। बाजार भी बहुत व्यापक हो गया है। नए जमाने में नए बाजार के इसी ड्रेंड को समझकर हम भी वक्त के साथ चले तो, हमारी कंपनी भी कुछ और बड़ी होने के साथ मजबूत भी हुई है। हालांकि बदले माहौल के साथ इस कंपनी ने भी अपने कारोबार के तरीके बदले हैं, और व्यवसाय को विकसित किया है और अब तो खैर गोल्ड के साथ सिल्वर ही नहीं डायमंड ज्वेलरी का भी बहुत बड़ा कारोबार यह कंपनी कर रही है। और, अब तो ब्रांडिंग का जमाना है। इसलिए बाजार में संघवी धनरूपजी देवाजी एंड कंपनी को एसडीडी के नाम से भी लोग जानते हैं। एसडीडी अब पहले की तरह किसी पेढ़ी या दूकान की तरह ना होकर कॉर्पोरेट कंपनी की तरह गोल्ड और डायमंड ज्वेलरी का कारोबार कर रही है। क्योंकि इस कंपनी की कमान अब नई पीढ़ी के हाथ में है। किसी परंपरागत गोल्ड ज्वेलरी की दुकान के कारोबार को नए जमाने के मुताबिक बदलना बहुत मुश्किल काम होता है। मगर यह मुश्किल काम भी किया एसडीडी की नई पीढ़ी के हंसमुख राणावत और आनंद राणावत ने। दोनों पढ़े लिखे है, नई सोच के हैं, कारोबार की तासीर और उसकी गहराई को समझते हैं और दोनों का आपसी तालमेल भी काफी तगड़ा है। अब एसडीडी की कमान इस पांचवी पीढ़ी के हाथ हैं। यह पीढ़ी इस परिवार के अग्रज इंदरभाई राणावत के मार्गदर्शन में तैयार हुई है। आनंद और हंसमुख राणावत नए जमाने के साथ चलना जानते है, जमाने की सोच के साथ कदम मिलाने के तरीके जानते है और पुरानी परंपरागत साख को कैसे और उंचा किया जा सकता है, इसके राज भी जानते है। यही कारण है कि बाजार के बदले हुए हालात में भी 33 नंबर यानी एसडीडी की साख नए लोगों और नए इलाकों में भी काफी बढ़ी है। हंसमुख राणावत अपनी कंपनी एसडीडी की इस बढ़ती हुई साख का श्रेय अपने पिता इंदरभाई राणावत को देते हैं। लेकिन इंदरभाई कहते हैं कि हमने तो सिर्फ प्लेटफॉर्म दिया है, इंटरनेशनल मार्केट से मुकाबला करने की जिम्मेदारी तो हमारी नई पीढ़ी को ही संभालनी है। इस करीब सौ साल से ज्यादा पुरानी गोल्ड ज्वेलरी की कंपनी के आज के हालात देखें तो वास्तव में यहां पर परंपरागत संस्कारों के साथ आधुनिक व्यवहार का बेहतरीन तालमेल साफ दिखाई देता है। एसडीडी की आज की विकसित स्थिति को देखकर कहा जा सकता है कि इंटरनेशनल लेवल की ब्रांडेड़ ज्वेलरी के लगातार बढ़ते चलन के बीच परंपरागत ज्वेलरी के बाजार में खुद को कैसे विकसित किया जाना चाहिए, यह एसडीडी से सीखने की जरूरत है।